श्री विजय कुमार यादव ने बाढ़ राहत में नई मिशाल कायम किया
बिहार के कुछ जिलें हर साल बरसात में तबाही के मंजर का गवाह बनते हैं जिसमें मधुबनी, दरभंगा, शिवहर, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, अररिया और किशनगंज प्रमुख हैं। यह सिलसिला कई दसकों से लगातार बदस्तूर जारी है। आनन-फ़ानन में सरकार जागती है, तात्कालिक राहत के लिए क़दम उठाये जाते हैं, भारी-भरकम योजनाओं-कार्यक्रमों की रुपरेखा बनाई जाती है और जब उस दिशा में आगे बढ़ने या उसको अमलीजामा पहनाने की बात सामने आती है लेकिन बहुत जल्दी ही कुछ स्वाहा हो जाता है। इसका एक दूसरा पहलू भी है, जिसमें ऐसे क्षत्रों के लिए जो भी नियमित योजयें बनती हैं या बनाई जाती है, कहीं से भी उसमें स्थानीय लोगों की सहभागिता सुनिश्चित नहीं होती, अतः इसका परिणाम यह होता है कि ऐसे कार्यक्रम कभी भी सतह पर क्रियान्वित नहीं हो पाते हैं। जबकि, तात्कालिक प्रयासों के सन्दर्भ में सरकार द्वारा जो कुछ भी मदद पहुंचाई जाती है उसके एक बड़े हिस्से का निवाला बिचौलिए खा जाते हैं जिसमें अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत भी होती है।
दरअसल, वहां ऐसा इसलिए भी हो पाता है क्योंकि वहां स्थानीयता के स्तर पर इन ग़रीबों के लिए कोई मुखर आव़ाज नहीं उभर पाता है। क्योंकि बिहार में, ख़ासकर ऐसे जिलों में जहाँ प्रत्येक साल बाढ़ की भयंकर आपदा आती है, थोड़ा भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति, वयस्कों की पीढ़ी, या जिसका कहीं भी बाहर ठौर बन सका है, पलायन कर चले जाते हैं। ऐसे में वहां सिर्फ और सिर्फ ऐसे लोग ही रह जाते हैं जो या तो बहुत ही सक्षम है, या निहायत ही ग़रीब है, या जो शारीरिक रूप से सक्षम नहीं हैं, या जो बहुत ही बुजुर्ग है या निहायत ही बच्चें हैं। अतः आप सहज अनुमान लगा सकते हैं कि वहां सक्षम और असक्षम जनसंख्या का अनुपात 95:05% (बेहद ग़रीब-बेहद मजबूत) का रह जाता है। यहीं कारण है कि वहां जो ग़रीब होता है उसकी आव़ाज सुनने वाला कोई नहीं होता है। जब आप करीब जायेंगें तो यह पता चलेगा कि मनरेगा जैसी योजनाओं में भी वहां भारी घपला है। जिसका खुलासा कई मौकों पर हुआ भी है लेकिन जो बिचौलिए हैं उनकी पहुँच ने सबकुछ छुपा दिया या आगे बात बढ़ने ही नहीं दिया। यही इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विडंबना है।
बहरहाल, आज परिस्थितियां करवट ले रही हैं। कुछ स्थानीय नौजवानों ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से सरकार को जगाने का काम भी कर रहे हैं। जबकि कुछ सक्षम लोगों की सक्रियता भी क्षेत्र में अपनत्व के नाते बढ़ी है, वहीँ राजनीतिक व्यवहारों की उपेक्षा ने कुछ ऐसे हालत पैदा कर दिए हैं कि लोगों का उठ खड़ा होना मज़बूरी बनता जा रहा है। जबकि कुछ ऐसे भी नौजवान हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र के प्रति घोर लगाव दिखाया है और जागरूकता को एक आंदोलन के रूप में खड़ा कर दिया है। आज जबकि यह क्षेत्र बाढ़ की चपेट में डूबा हुआ है, वहीँ सरकारी प्रयासों की पहुँच की अपनी सीमाएं भी हैं, ऐसे में कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत प्रयासों से घर-घर पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं और हर तरह की मदद लेकर खड़े हैं। ऐसा ही एक नाम मधुबनी जिले के फुलपरास अनुमंडल, ग्राम- रामनगर से भी सामने आया है। विजय कुमार चंदेश्वर यादव, जिन्होंने पसीने की गाढ़ी कमाई से अपने पैत्रिक गाँव में भव्य ‘दुर्गा माता मंदिर’ का निर्माय कराया और ‘मंदिर ट्रस्ट’ के नाम पर पुरे क्षेत्र में एक सामाजिक आंदोलन खड़ा कर दिया है।
यह जानकार ख़ुशी होती है कि इन विपदा में बाहर रहते हुए भी विजय ने क्षेत्र के सैकड़ों गाँवों में व्यक्तिगत स्तर पर ट्रस्ट के नवयुवकों के द्वारा व्यापक रूप से सहायत कार्य सफल कराया है। इस प्रयास के तहत समाज के सभी समुदाओं, सभी वर्गों, खासकर उन ग़रीब माताओं-बहनों, बुजुर्गों, भाईयों को मदद पहुँचाया गया है जिनके पास कोई मदद नहीं पहुँच पाई थी। मदद के रूप में खाने का सामान जिसमें चूरा, चीनी, गुड़, पानी और दूसरी चीजों में मोमबत्ती, माचिस, प्लास्टिक चादरें आदि शामिल हैं। फ़ोन पर बात करते हुए विजय कहते हैं, “यह मेरा कर्तव्य था कि अपने लोगों के लिए काम आ सकूँ। खासकर इस आफत के समय जब वहां भूख की आग सबसे प्रमुख हो। अभी तक ‘दुर्गा माता मंदिर सेवा ट्रस्ट’ के माध्यम से 35 क्विंटल चूरा, 10 क्विंटल चीनी, 5 हजार मोमबत्ती, इतनी ही माचिस के पैकेट, पानी के पैकेट और तकरीबन एक हजार मीटर प्लास्टिक की सीटें लोगों तक पहुँचाया जा चूका है। यह सब मैंने अपने प्रयास से किया है। मेरा मानना है कि आप जो कुछ भी कमाते हैं उसके कुछ हिस्से पर समाज और प्रकृति का भी हक़ है और ऐसा इसी हक़ की ख़ातिर मैंने किया है।”
दरअसल, यह एक ऐसा प्रयास है जिससे समाज के उन वर्गों को सबक सीखनी चाहिए जो रहते तो समाज में ही, राजनीति भी समाज में करते हैं, भावनात्मक शोषण भी समाज का करते हैं लेकिन समाज के लिए कुछ भी करने की स्थिति में पीछे छुप जाते हैं। जबकि राजनीति या अपने व्यक्तिगत लाभों के सन्दर्भ में करोड़ों का वारा-न्यारा करने में जरा भी हिचकते नहीं हैं। आज उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि स्थितियां बदल रही है, लोगों की सोंच बदल रही है, जाति और धर्म की दीवारें टूट रही है, ऐसे में यह स्वाभाविक है कि राजनीतिक और व्यावहारिक सीमाएं भी टूटेंगी और ऐसे लोगों को समाज आइना भी दिखायेगा, इसमें संदेह नहीं होना चाहिए। आज विजय ने निश्चित ही एक ऐसा उदाहरण पेश किया है जिसे समाज याद रखेगा और आने वाले समय में उसका हिसाब भी देगा।